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________________ को धर्म हो इसलिये ? या अपनी क्रीडा के लिये ? या प्राणियोंको निग्रह और अनुग्रह करने के लिये या अपने को सुख होवे इसलिये, या अपने दुःखका नाश करनेके लिये ? या अपने पापका क्षयके लिये ? या अपने स्वभाव से इस सृष्टिका रचना करते हैं १. यह हमारा एकादश विकल्प शास्त्रिजीका अलिविलासिको विलापि बना देगा-- जायेत पौरस्त्यविकल्पनायां कदाचिदन्यागपि त्रिलोकी । न नाम नैयत्यनिमित्तमस्य किंचिद् विरूपाक्षरुचेः समस्ति ॥ १ ॥ करोत्ययं वां यदि कर्मतन्त्रः स्वतन्त्रतैवास्य तदा कथं स्यात् । सखे ! स्वतन्त्रत्वमिदं हि येषां । परानपेक्षैव सदा प्रवृत्तिः ॥२॥ कर्मव्यपेक्षस्य च कर्तृताया मीशस्य युक्ता न खलु प्रवृत्तिः। कर्मैव यस्मादखिलत्रिलोकी __ करिष्यते चित्रविपाकपात्रम् ॥ ३ ॥ नाऽचेतनं कर्म करोति कार्य
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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