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________________ ( १९१ ) जीवोंको सुमार्गमें लगानेवाली हैं और सत्यपथकी दर्शक हैं। इनका अभ्यास प्राणी मात्रको करना चाहिये क्योंकि यह संसार अनित्य है, परलोकमें अवश्य ही गमन करना है, माता पिता भार्यादि सब ही रुदन करते हुए रह जाते हैं आरै फिर उसका अग्नि संस्कार कर देते हैं, और फिर जो कुछ उसका द्रव्य होता है वे सब लोग उसका विभाग कर लेते हैं किन्तु उसने जो कर्म किये थे वे उन्ही काँको लेकर परलोकको पहोंच जाता है र उन्ही काँके अनुसार दुःख सुख रूप फलको भोगता है, इस लिये जर मनुष्य भव प्राप्त हो गया है फिर जाति आर्य, कुल आर्य, क्षेत्र आर्य, कर्म आर्य,भापा आर्य,शिल्पार्य जब इतने गुण आयताके भी प्राप्त हो गये फिर ज्ञानार्य, दर्शनार्य चारिवार्य, अवश्य ही बनना चाहिये । तत्त्वमार्ग के पूर्ण वेत्ता होकर परोपकारियोंके अग्रणी बनना चाहिये और सत्य मार्गके द्वारा सत्य पदार्थों का पूर्ण प्रकाश करना चाहिये । फिर सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन, सम्यग् चारित्रसे स्वआस्माको विभूपित करके मोक्षरूपी लक्ष्मीकी प्राप्ति होवे । फिर सिद्धपद जो सादि अनंत युक्त पदवाला है उसको प्राप्त होकर अजर अमर सिद् बुद्ध ऐसे करना चाहिये । ___ अनंतान, अनंतदर्शन, अनंतनुस, अनंतववलवीर्य युक्त होकर
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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