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________________ ( १३६ ) २ भोग अंतराय से ३ उपभोग अंतराय से ४ वल वीर्य अंतरायसे ५ । यह पांच ही अंतराय करनेसे जीव अंतराय कर्मोंको वांधवे हैं जैसेकि कोई पुरुष दान करने लगा तव अन्य पुरुष कोई दानका निषेध करने लग गया और वह दान करने से पराङ्सुख हो गया तो दानके निषेध करताने अंतराय कर्मको बांध लिया । इसी प्रकार अन्य अंतराय भी जान लेने || सो यह अष्ट कर्मो के बंधन भव्य जीवापेक्षा अनादि सान्त हैं, यदुक्तमागमे तदा जीवाणं कम्मो वचय पुहा गोयमा अत्थेगश्याएं जीवाण कम्मो वचय सादिए सपतवसिए अत्थे गश्याएं जीवाणं कम्मो वचय दिए सपवसिएत्थे श्याणं अणा दिए अप्पमव सिए नोचेवणं जीवाणं कम्मो वचय सादिए अप्पतवसिए से गोयमा इरिया वदिया बंधयस्स कम्मो वचय सादिय सपक्षवसिए नवसिद्धियस्स कम्मो वचय श्रादिए सपव सिए अनवसिद्धियस्स कम्मो वचय
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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