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________________ ( १३२ ) पाणी तत्त्वविद्याको नही प्राप्त हो सक्ते हैं; किन्तु यह कर्म जीव षट् प्रकारसे बांधते हैं जैसेकि णाणावरणिज कम्मा सरीरपटग बंधेणं भंते कम्मस्स उदयणं गोयमा णाण पमिणीययाए १ णाणणिएहवणयाए श णाणंतराएणं ३ णाण प्पदोसणं ४ णाणञ्चासादयाए ५ णाणविसं. वादणा जोगेणं ६॥ भगवती सू० शतक ७ उद्देश ए॥ भाषार्थ:-श्री गौतम प्रभुनी श्री भगवान्से प्रश्न पूछते हैं कि हे भगवन् ! जीव ज्ञानावर्णी कर्म किस प्रकारसे बांधते हैं ॥ भगवान् उत्तर देते हैं कि हे गौतम ! षट् प्रकारसे जीव ज्ञानावणी कर्म बांधते हैं जैसेकि-ज्ञानकी शत्रुना करनेसे अर्थात् सदैव काल ज्ञानके विरोधि ही बने रहना और अज्ञानको श्रेष्ठ जानना, अन्य लोगोंको भी अज्ञान दशामें ही रखनेका परिश्रम करना १॥ तथा ज्ञानके निण्हव बनना अर्थात् सो वार्ता यथार्थ हो उसको मिथ्या सिद्ध करना था ज्ञानको गुप्त करना, जैसेकि किसीके पास ज्ञान है उसने
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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