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________________ प्रार्थना हे प्रभो आनन्दसिन्धो, बुद्धि मुझको दीजिये । हे दीनबन्ध पाप सब, मेरा निवारण कीजिये । इन्द्रियां यौ मन मेरा, वश में रहे मेरे सदा । आया शरण में आपके सुझपे कृपा न कीजिये । दुर्गुण मेरे में होय जो, कुछ याप शीघ्र नसाइये | शक्ति अपनी दीव्य अवतो, हे दयामय दीजिये । शूरता औ धीरता औ, तेज मुझमें हो सदा | हे दयानिधि न मेरी, यह प्रार्थना सुन लीजिये । संगति सदा हो सज्जनोंकी, श्रेष्ठ पुरुषों का चलन । अन्तःकरण में भावना, सुनियों की सुन्दर दीजिये । ऐसी दया हो जो मेरा, यह ब्रह्मचर्य बना रहे। शान्ति सुख जिसमें मिले, उस परस पदको दीजिये भावना प्रकटे हृदय में, मेरे समकित रत्न की । हे विभो निज भक्तको, अन आप अपना लीजिये ।
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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