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नयमांमृत
११. जीवाटि नव पटायाका उपदेश, १२. जीवका स्वरूप, उपयोगका भेद प्रभेट, १३. जीवके श्रीपशुमिकादि भावोका, तथा द्रव्यामा, मायामा प्रादि
अाठ मार्गणाओंका निरूपण, १४. लोकका, सततत्वांका, सम्मादर्शन और सम्यमानका स्वार, १५. सम्यक चारित्र और उनके भेदोका निरूपण, १६. शीलके १८००० भेटोका वर्णन, १७. धर्मध्यान और उसके भेदोका वर्णन, १८. आपकोणी और केवलगानको उत्पत्ति श्रादिका निष्पना, १६. केवलि समुद्घातका वर्णन, २०. योग-निरोध-क्रियाका निरूपण, २१. अयोगिकेवली और निझोंका वर्णन, २२. श्रावकके बारह नतोका वर्णन,
प्रशमरति प्रकरणकी रचना अत्यन्त सुन्दर, मनोहारिणी एवं प्रशमप्रदायिनी है।
श्वेताम्बर सम्प्रदायमें यह ग्रन्य तत्त्वार्थ सूत्रके प्रणेता श्रा० उमात्वातिकृत माना जाता है । पं० सुखलालजी आदि श्वे० विद्वानोंने उमात्वातिका समय विक्रमकी प्रथम शताब्दी निश्चित किया है । (देखो-तत्वार्थ. सूत्रकी प्रस्तावना) पर दि० पट्टावली आदिले ज्ञात होता है कि उमात्वाति यतः कुन्दकुन्दान्वयमें हुए है, अतः उनका समय विक्रमकी दूसरी शता. ब्दीसे लेकर तीसरी शताब्दी तक पहुँचता है; ऐसा पं० कैलाशचन्द्रनी आदि दि० विद्वानोंका अभिमत है ।
प्रशमरतिप्रकरणपर हरिभद्रसूरिकृत संस्कृत टीका मुद्रित हो चुकी है। इसका हिन्दी अनुवाद पं० राजकुमारजी साहित्याचार्य, एम. ए. ने किया है। इन दोनोंके साथ मूलग्रन्थका बहुत सुन्दर संस्करण श्रीरायचन्द्र जैनशास्त्रमालासे सन् १९५० में प्रकाशित हुआ है।