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जैनधर्मामृत
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मोक्ष जैसे सूक्ष्म तत्त्वोंकी जिज्ञासा एवं अर्थ - चिन्तनको अर्थ- विचारण कहते हैं । गुरु-मुखसे निकले हुए शब्द और अर्थको एक बार ही सुनकर चिरकाल तक विस्मरण नहीं होने की शक्तिको अर्थअवधारण कहते हैं । ये सब बुद्धि ऋद्धि के भेद हैं, इनके अतिरिक्त वुद्धि ऋद्धि के और भी सैकड़ों भेद परमागममें बतलाये गये हैं; तथा श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मन:पर्यय ज्ञानके जघन्यसे लेकर उत्कृष्ट तक के असंख्य भेद भी आगममें वर्णित हैं । जो कि परस्परमें आंशिक वृद्धिको लिये हुए अनन्त हैं । हमारे पूर्वज इन सभी बुद्धि ऋद्धियों के धारक. हुए हैं और अनेक पुरुष - सिंह या पुरुषोत्तमोंने कैवल्य प्राप्तकर ज्ञानार्णवका भी पार प्राप्त किया है, उनके सामने आजकलकी क्षुद्रवुद्धिवाले हम लोगोंका ज्ञान ही कितना-सा है ? ऐसा जानकर : बुद्धिमानोंको अपनी बुद्धिका, ज्ञानवानोंको अपने ज्ञानका, श्रुतंधरों को अपने श्रुतका अभिमान नहीं करना चाहिए । लोक-प्रियताका मद न करनेका उपदेश
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गर्वं परप्रसादात्मकेन वाल्लभ्यकेन यः कुर्यात् । - तद्वाल्लभ्यकविगमे शोकसमुदयः परामृशति ॥ ४८ ॥ जो दूसरोंके प्रसादसे प्राप्त होनेवाली लोकवल्लभता, प्रभुता या जनप्रतिष्ठाका गर्व करता है, वह उस प्रतिष्ठाके विनष्ट हो जाने पर महान् शोकका अनुभव करता है । अतएव लोकप्रियता, प्रतिष्ठा या प्रभुता का भी मद नहीं करना चाहिए ॥ ४८ ॥
• श्रुतमद नहीं करनेका उपदेश
मापतुपोपाख्यानं श्रुतपर्यायप्ररूपणां चैव । श्रुत्वाऽतिविस्मयकरं विकरणं स्थूलभद्रमुनेः ॥४६॥