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द्वितीय अध्याय शक्तिको बुद्धि कहते हैं। इस दृष्टि से ज्ञान और बुद्धिका अन्तर
स्पष्ट है। . ... माताकी उच्च वंश-परम्पराके अभिमान करनेको जातिमद
कहते हैं । पिताके उच्च वंश-परम्पराके अभिमान करनेको कुलमद कहते हैं । शरीर-सौन्दर्यके अभिमान करनेको शरीरमद या रूपमद कहते हैं। शारीरिक एवं कौटाम्बिक शक्तिके गर्व करनेको बलमद कहते हैं। धन, वैभव, समृद्धि और अभीप्सित वस्तु प्राप्ति आदिके गर्व करनेको ऋद्धिमद, धनमद या लाभमद कहते हैं । वुद्धिके मदको ज्ञानमद कहते हैं। अपनी लोक-पूजा, सर्वजनप्रियता, प्रभुता या प्रतिष्ठाके मान करनेको प्रभुतामद, पूजामद या वाल्लभ्यमदः कहते हैं। तप और श्रुतके मान करनेको तप और श्रुतमद कहते हैं। ..
मदके स्थूल रूपसे या जातिसामान्यकी अपेक्षा ये उपर्युक्त आठ भेद कहे गये हैं। किन्तु सूक्ष्मरूपसे या विशेषकी अपेक्षा प्रत्येकके ___ अनेक अवान्तर भेद होते हैं। जैसे धर्म,न्याय, व्याकरण, साहित्य,
ज्योतिष, वैद्यक, गणित, विज्ञान (साइंस), मंत्र, तन्त्र, कला-कौशल आदिकी अपेक्षा ज्ञानमदके अनेक भेद हो जाते हैं। धनबल, जनबल, सेनावल, मनोबल, वचनबल और कायबल, आदिकी अपेक्षा वलमदके भी अनेक भेद हो जाते हैं। इसी प्रकार शेष मदोंके भी अनेक भेद जानना चाहिए। यतः सम्यक्त्वी जीवकी दृष्टि अपने आत्माकी ओर हो जाती है और उसे ही वह यथार्थ, स्थायी और अपनी सम्पत्ति मानता है, अतः कुल-जाति आदि बाहरी वस्तुओं का वह लेशमात्र भी गर्व नहीं करता, प्रत्युत गर्व करके दूसरेको