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: जैनधर्मामृत
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कषायका पर्यायवाची या एकार्थक नाम बतलाया गया है ' । यद्यपि इन सभी नामोंमें निरुक्तिकी अपेक्षा कुछ अर्थ-भेद है, तथापि अपनी श्रेष्ठता और दूसरेकी हीनता दिखानेकी अपेक्षा सबमें समानता मानी गई है । आचार्योंने मदके आठ भेद बतलाये हैं, उनमें उक्त नाम रत्नकरण्डकारके मतानुसार हैं । प्रशमरतिप्रकरणके रचयिताने शरीरके स्थान पर रूप, ऋद्धिके स्थानपर लाभ, पूजाके स्थानपर लोक - वल्लभता और तपके स्थान पर श्रत नाम कहा संस्कृत भावसंग्रहकारने ऋद्धि के स्थानपर 'वित्त' और एक दूसरे ग्रन्थकारने ‘प्रभुता’ का नाम दिया है । पर अर्थको देखते हुए कोई विशेष अन्तर नहीं है, क्योंकि लाभ, ऋद्धि, वैभव, वित्त आदि नाम ऐश्वर्यके और लोक- वल्लभता, पूजा और प्रभुता आदि नाम प्रतिष्ठाके द्योतक हैं । बुद्धि ज्ञानका पर्यायवाची ही नाम है । अन्तर केवल रह जाता है श्रुत और तपके नामोंमें । यह अन्तर कुछ महत्त्वपूर्ण है । अतः ज्ञानमें श्रुतका अन्तर्भाव हो जाता है, अतः रत्नकरण्डोक्त 'तप' नामका मद अधिक व्यापक है। प्रशमरतिकारने बुद्धिसे श्रुतको जो भिन्न गिनाया है, वह अपनी एक खास विशेषता रखता है । गुरुके पास शास्त्रादिके अध्ययनसे प्राप्त होनेवाले ज्ञानको श्रुत कहते हैं और विना किसी के पास शास्त्रादि के पढ़े ही जन्म-जात नैसर्गिकी प्रतिभा या तात्कालिक सूझ-बूझ की
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१ देखो कसायपाहुड सुत्तके व्यञ्जन अर्थाधिकारकी दूसरी गाथा और उसकी टीका आदि । २ देखो श्लोक संख्या ८० । ३ देखो श्लोक संख्या ४०७ ।