________________ ष ध्याय अब गुणस्थानोंका वर्णन करते हैं। आत्मगुणोंके क्रमिक विकास वाले स्थानोंको 'गुणस्थान' कहते हैं। संसारके समस्त . प्राणी हीनाधिक गुण वाले हैं, उनकी चित्तवृत्ति या मनःशुद्धि विभिन्न प्रकारकी होती है, उसका पृथक् पृथ्क विभाग कर कमशः विकसित गुण वाले जीवोंके जो पद होते हैं, उन्हें गुणस्थान कहते हैं, गुणस्थानके चौदह भेद हैं / जो इस प्रकार हैं गुणस्थानोंके नाम मिथ्याहक सासनो मिश्रोऽसंयतो देशसंयतः / प्रमत्त इतरोऽपूर्वानिवृत्तिकरणौ तथा // 1 // सूचमोपशान्तसंक्षीणकपाया योग्ययोगिनौ / गुणस्थानविकल्पाः स्युरिति सर्वे चतुर्दश // 2 // 1 मिथ्यादृष्टि, 2 सासादनसम्यग्दृष्टि, 3 सम्यग्मिथ्यादृष्टि, 4 असंयतसम्यग्दृष्टि, 5 देशसंयत, 6 प्रमत्तसंयत, 7 अप्रमत्तसंयत, 8 अपूर्वकरणसंयत, 9 अनिवृत्तिकरणसंयत, 10 सूक्ष्मसाम्परायसंयत, 11 उपशान्तकपायसंयत, 12 क्षीणकघायसंयत, 13 सयोगिकेवली और 14 अयोगिकेवली / इस प्रकार गुणस्थानके ये चौदह भेद होते हैं / / 1-2 // 1. मिथ्यादृष्टि गुणस्थान तत्वानि जिनदृष्टानि यस्तथ्यानि न रोचते / .. मिथ्यात्वस्योदये जीवो मिथ्यादृष्टिरसौ मतः // 3 //