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पञ्चम अध्याय .. १६१ .. स्तवन, वन्दना आदिके समय श्री श्रीमत्पञ्च - परम गुरुओंका स्मरण करते हुए शरीरका श्रुत-कथित नियत उच्छ्वास काल प्रमाण त्याग करना, अर्थात् शरीरकी सर्व क्रिया बन्द कर देना कायोत्सर्ग नामका आवश्यक है ॥२६॥ ... ... ..... ..
भावार्थ-एक कायोत्सर्गका काल २७ श्वासोच्छ्वास-प्रमाण कहा गया है । वन्दना, स्तुति, सामायिक आदि आवश्यक करते समय २७ श्वासोच्छ्वासप्रमाण काल तक निर्व्यापार रूपसे मौनपूर्वक अवस्थित रहनेको या निराकुल भावसे नौ बार णमोकारमन्त्रके जाप करनेको कायोत्सर्ग कहते हैं। . . अब शेष रहे हुए सात गुणांका वर्णन करते हैं।
.१ केशलुंचगुण कूर्चश्मश्रुकचोल्लुञ्चो. लुचनं स्यादमी यतः ।
परीपहजयाऽदैन्यवैराग्यासङ्गसंयमाः ॥२७॥ .. तच्चतुस्विंद्विमासेपु सोपवासे विधीयते । . . . . . .
जघन्यं मध्यमं ज्येष्टं सप्रतिक्रमणे दिने ॥२८॥"..... . शिर और दाढ़ीके बालोंके लोंचनेको, अर्थात् हाथोंसे उखाड़नेको केशलुंच कहते हैं। इसके करनेसे. परीषहजय, अदीनता,
वैराग्य, असंगता और संयमकी प्राप्ति होती है । जघन्य केशढुंच .. चार मासमें, मध्यम केशढुंच तीन मासमें और उत्कृष्ट केशलुंच दो मासमें प्रतिक्रमण-सहित उपवासके दिन किया जाता है ॥२७-२८॥
- २ आंचलक्यगुण' वल्कलाजिनवस्त्राद्यैरङ्गासंवरणं वरम् ।
आचेलक्यमलङ्कारानझसङ्गविवर्जितम् ॥२६॥... . ' वल्कल ( वृक्षोंकी छाल.), चर्म और वस्त्रादिसे अंगका नहीं