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जैनधर्मामृत
धारक भिक्षुक कहलाते हैं और वे उत्कृष्ट श्रावक हैं। इससे आगे .. सर्व परिग्रह रहित पूर्ण दिगम्बर साधुका ही स्थान है ॥१४०॥
श्रावक सम्बन्धी आचारका विशेष वर्णन जाननेके लिए रत्नकरण्डश्रावकाचार, पुरुषार्थसिद्धयुपाय, अमितगतिश्रावकाचार, सागारधर्मामृत और लाटी संहिता आदि देखना चाहिए । इस प्रकार श्रावक धर्मका वर्णन करनेवाला चौथा ।
अध्याय समाप्त हुआ।