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यि ध्याय
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सपना
सम्यग्ज्ञानका स्वरूप त्रिकालगोचरानन्तगुणपर्यायसंयुताः ।
यत्र भावाः स्फुरन्त्युच्चैस्तज्ज्ञानं ज्ञानिनां मतम् ॥१॥ जिसमें भूत, भविष्यत् और वर्तमान कालके विषयभूत अनन्त गुण-पर्यायोंसे संयुक्त पदार्थ अतिशयताके साथ प्रतिभासित होते हैं, . उसे ज्ञानी पुरुषोंने ज्ञान कहा है ॥१॥
ध्रौव्यादिकलितैर्भावनिर्भर कलितं जगत् ।
चिन्तितं युगपद्यत्र तज्ज्ञानं योगि-लोचनम् ॥२॥ ध्रौव्य, उत्पाद और व्ययसे संयुक्त पदार्थोंसे ठसाठस भरा हुआ यह जगत् जिस ज्ञानमें युगपत् प्रतिबिम्बित हो, वही सच्चा ज्ञान है, जो कि योगिजनोंके नेत्रके समान है ॥२॥ ...
सम्यग्ज्ञानके भेद ... मतिश्रुतावधिज्ञानं मनःपर्ययकेवलम् ।
तदित्थं सान्वयभेदैः पञ्चधेति प्रकल्पितम् ॥३॥ • वह ज्ञान मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल, इन सान्वयी (सकारणक) भेदोंसे पाँच प्रकारका कल्पना किया गया है ॥३॥ . भावार्थ:-वास्तव में ज्ञानसामान्य एक ही है, किन्तु कर्मके क्षय-क्षयोपशमादिके निमित्तसे उसके पाँच भेद हो जाते हैं। जो