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जैनधर्मामृते
गणधरादि देवोंने सम्यग्दर्शनसे सम्पन्न चाण्डालको भी भस्मसे प्रच्छन्न किन्तु अन्तरङ्गमें तेज-सम्पन्न अग्निके समान 'देव' अर्थात् श्रेष्ठ कहा है ।।१०४॥ __ भावार्थ-नीच कुलमें जन्मा हुआ चाण्डाल भी यदि सम्यग्दर्शनसे युक्त है, तो श्रेष्ठ है-अतः पूज्य है। किन्तु उच्च कुलमें जन्म लेकर भी जो मिथ्यात्व-युक्त हैं, वे श्रेष्ठ और आदरणीय नहीं हैं।
सम्यग्दर्शनकी प्रधानता दर्शनं ज्ञानचारित्रात्साधिमानमुपाश्नुते ।
दर्शनं कर्णधारं तन्मोक्षमार्गे प्रचक्षते ॥१०५॥ ज्ञान और चारित्रकी अपेक्षा सम्यग्दर्शनकी प्रधानरूपसे उपासना की जाती है क्योंकि जिनदेवने उस सम्यग्दर्शनको मोक्षमार्गके विषयमें 'कर्णधार' अर्थात् पतवार या खेवटिया कहा है ॥१०५॥
सम्यग्दर्शन धर्मरूप वृक्षका चीज है विद्यावृत्तस्य सम्भूतिस्थितिवृद्धिफलोदयाः ।
न सन्त्यसति सम्यक्त्वे बीजाभावे तरोरिव ॥१०६॥ सम्यक्त्वके अभावमें ज्ञान और चारित्रकी उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि और फल-प्राप्ति नहीं हो सकती है जैसे कि वीजके अभावमें वृक्षकी उत्पत्ति आदि असम्भव है ।।१०६॥
मोही मुनिसे निर्मोही गृहस्थ श्रेष्ठ हैं गृहस्थो मोक्षमार्गस्थो निर्मोहो नैव मोहवान् ।
अनगारो गृही श्रेयान् निर्मोहो मोहिनो मुनेः ॥१०७॥ मोह-रहित सम्यग्दृष्टि गृहस्थ मोक्षमार्ग पर स्थित है किन्तु