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तप की महिमा
तप रूप तेजस् शक्ति के द्वारा ही मनुष्य ससार मे विजय श्री एव समृद्धि प्राप्त कर सकता है।
सिद्धियो का मूल , तप जितनी भी शक्तियाँ हैं, विभूतियाँ हैं, लब्धियाँ है, यहाँ तक कि केवल ज्ञान और मोक्ष भी जो हैं, वह तप के द्वारा ही प्राप्त हो सकता है । समूचे धर्म ग्रन्थो के इतिहास मे, ससार के इतिहास मे ऐसा एक भी उदाहरण नही मिलेगा कि तप के विना किसी ने कुछ लब्धि, उपलब्धि, ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त की हो। तप से असख्य शक्तिया प्राप्त होती हैं। अगणित विभूतिया प्राप्त होती हैं । शास्त्र में कहा हैं
परिणाम तव वसेण इमाईहुति लद्धीओ। जितनी भी ल ब्धिया हैं, वे सब तप का ही परिणाम हैं । तप साधना से आत्मा मे अद्भुत ज्योति प्रदीप्त होती है, एक विचित्र, प्रवल शक्ति जाग्रत होती है, और उस शक्ति से आत्मा मे ये समस्त विभूतियाँ ऐसे प्रस्फुटित हो जाती है जैसे कमल कलिका मे अपूर्व रूप एव सौरभ ।
कहावत है-वर्षा भी कव होती है, जब सूर्य तपता है, यदि जेठ मे सूर्य न तपे, मिगसर पौष जैसा ठडा बना रहे तो क्या समय पर वृष्टि हो सकती है ? और वृष्टि के विना सृष्टि का क्या हाल होगा ? तो सृष्टि का आधार वृष्टि है, और वृष्टि का कारण है सूर्य का तपना ! यह तो एक प्राकृतिक उदाहरण है जिसे आस्तिक और नास्तिक सभी स्वीकार करते हैं, मुझे आश्चर्य है इस बात का कि प्राकृतिक उदाहरण आपके सामने होते हुए भी आप राह क्यो नही समझ सकते कि जीवन की सृष्टि मे भी सदगुणो की वृष्टि तभी होगी, प्रभाव, और तेज की वृद्धि तभी होगी जब जीवन तपेगा, तप से निखरेगा, तेजस्वी वनेगा । भारतीय संस्कृति का एक प्रसिद्ध सूक्त है-तपोमूला हि सिद्धय.--- समस्त सिद्धिया तप मूलक हैं, सब की जड तप है।
१ प्रवचन सारोद्वार, द्वार २८०, गाथा १४६२ ।