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श्रद्धा सुमन
सवैया
चातुरमास सुचंग भयो, तप-जाप अथाग कियो हुलसाई, . बोकड़ शाल विशाल वनी, पशु-पालन वित्त दियो दिलचाई। जन्म-जयन्तिय जोर रही, पथ संजम लीध विरागन बाई, ठाट अभूत रयो नित्त को, धन धन्य कहैं सब लोग लुगाई ||१ . साहित में रूचि खूब रही, अरु आनंद थैलिय हाथ बढ़ाई, मोद बढ़ाय कियो खरचो, मन में न करी कवहूं सकुचाई। कोहु न होड करें बगड़ीपुर की, सब शाह बसे रखते सुघड़ाई, सोहन चित्त उदार वस जित, तो फिर कौन कमी रह भाई ॥२॥
-~-सोहन लाल सूराना
कुम्भकणम्