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परिशिष्ट २ अप्पिच्छता सप्पुरिसेहि वण्णिता ।
-थेरगाथा १९६११२७ सत्पुरुषों ने अल्पेच्छता (कम इच्छा) की प्रशंसा की है। ६ विरियं हि किलेसानं आतापन परितापनछैन ।
-विसुद्धिमग्गो १७ वीर्य (शक्ति) ही क्लेशों को तपाने, एवं झुलसाने के कारण आताप (तप) कहा जाता है।