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वैदिक वाङमय में 'तप'
तपो वाऽग्निस्तपो दीक्षा ।
तप एक अग्नि है, तप एक दीक्षा है । तपसा वै लोकं जयन्ति ।
- शतपथ ब्राह्मण ३१४/३/३
५
- शतपथ ब्राह्मण ३ | ४|४।२७
तप के द्वारा ही सच्ची विश्वविजय प्राप्त होती है । तपो मे प्रतिष्ठा ।
- तैत्तिरीय ब्राह्मण ३।७१७
तप मेरी प्रतिष्ठा है, मेरी स्थिरता का हेतु है ।
श्रेष्ठो ह वेदस्तपसोऽधिजातः ।
श्रेष्ठ ज्ञान तप के द्वारा ही प्रकट होता है ।
तपो हि स्वाध्यायः ।
—गोपथब्राह्मण १|१|E
— तैत्तिरीयआरण्यक २।१४
स्वाध्याय स्वयं एक तप है ।
स तपोऽतप्यत, स तपस्तप्त्वा इदं सर्वम् असृजत ।
— तैत्तिरीय आरण्यक—–८१६
उस (ब्रह्म) ने तप किया और तप करके इस सब की रचना की ।