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तप-सक्त
जैन वाङमय में 'तप'
परिभाषा: तापयति अप्टप्रकारं कर्म इति तपः ।
-आवश्यक मलयगिरि राण्ड २ अ० १ जो आठ प्रकार के कमों को तपाता है, उसका नाम तप है। तणते अणेण पावं कम्ममिति तयो।
-~-निशीषणि ४६ जिस साधना से पाप कर्म तप्त होता है, वह सार है। इच्छा निरोपस्तपः ।
-~-उमाम्यालि, नवा गुग . अपनी इच्छाओं को नियत्रण में लाना तप है।
देहदुक्तं महाफल।
दहका दमन करना है, का महान फल ।
नव कोटिय संचियं काम सपना मिरिन । - TET Ek