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व्युत्सर्ग तप कि मेरी साधना, ज्ञानाभ्यास आदि में गण को छोड़ देने से अधिक लाभ हो सकता है तो उन कारणों को ध्यान में रखकर वह 'गण' को छोड़ भी सकता है । स्थानांग सूत्र में बताया है, साधक सात कारणों से गण का व्युत्सर्ग, गण का त्याग कर सकता है ।
-गण छोड़ने के सात कारण ये हैं
१. मैं सब धर्मों (ज्ञान, दर्शन और चारित्र को साधनाओं) को प्राप्त करना (साधना) चाहता हूँ और उन धमों (साधनाओं) को मैं अन्य गण में जाकर ही प्राप्त कर (साध) सकूगा अतः मैं गण छोड़कर अन्य गण में जाना चाहता हूं।'
२. मुझे अमुक धर्म (साधना) प्रिय है और अमुक धर्म (साधना) प्रिय नहीं है। अत: मैं गण छोड़कर अन्य गण में जाना चाहता हूं।
३. सभी धर्मों (ज्ञान, दर्शन और चारित्र) में मुझे सन्देह है अतः संशय निवारणार्थ में अन्य गण में जाना चाहता हूं।
४. कुछ धमों (साधनाओं) में मुझे संशय है और कुछ धो (साधनाओं) में संशय नहीं है। अतः मैं संशय निवारणार्थ अन्य गण में जाना चाहता हूं।
५. सभी धर्मों (शान, दर्शन और चारित्र सम्बन्धी) को विशिष्ट धारणाओं को मैं देना (तिताना) चाहता हूं। इस गण में ऐसा कोई योग्य पात्र नहीं है अतः मैं अन्य गण में जाना चाहता हूं।
६. युध धनों (पूर्वोक्त धारणाओं) को देना चाहता हूं और कुछ धमा (पूर्वोक्त धारणाओं) को नहीं देना चाहता हूं अतः मैं अन्य गण में जाना . चाहता हूं।
१. एकल विहार की प्रतिमा धारण करके विचरना चाहता है। अतः . में गण छोड़कर जाना चाहता हूँ।)
ग ल' का मुख्य प्रपोजन ई-यूत भान पवारिष का विशेष . .
१ पर्माचार को मोड़ने का कारण यहाकर मन को जमा प्राप्त ..
कर लेनी चाहिए। आमा तिन दिना नाम नहीं छोड़ना चाहिए।