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लक्ष्य साधना
एक प्रसिद्ध आचार्य ने कहा है-'भगवान ने अपने समस्त प्रवचनो मे जो कुछ कहा है उसे यो बताया जा सकता है, कि भगवान ने सिर्फ दो ही बातें बताई हैं—मार्ग और मार्ग का फल
मग्गो मग्गफलं ति य दुविहं जिणसासणं समक्खादं ।' इन दो बातो मे ही संपूर्ण जिन प्रवचन का समावेश हो गया है । मार्ग का अर्थ है-रास्ता, साधना, पथ और मार्ग फल का अर्थ है-मजिल । माध्य नीर गतव्य । गस्ता पार कर, यात्रा पूरी कर जिस ध्येय को हम पाना चाहते हैं, उसे 'मार्ग फल' कहा जाता है। उस मार्ग फल के सम्बन्ध मे यहा विचार प्रस्तुत किये जा रहे हैं। आपने समझा ही होगा कि हमारी यामा या अतिम ध्येय है --आत्मस्वरूप का दर्शन । अर्थात् रागद्वे प का क्षय फर सपूर्ण कमों से मुक्ति । ससार के समस्त साधको के सामने यही एक मात्र ध्येय रहता है कि हम मोक्ष प्राप्त करें। साधक को 'मुमुक्षु' कहा जाता है ! मुमुक्षु शब्द के अर्य पर विचार करेंगे तो आपको पता चलेगा,
१ भूलागार २०२