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जैन धर्म में तप अविनाशी आत्मतत्व, अथवा परमात्मतत्व की कल्पना के आधार पर मन की धुरी को स्थिर रखना ही अक्षर-ध्यान का उद्देश्य है। इसकी कल्पना निम्न चित्र के अनुसार समझनी चाहिए।
अक्षर ध्यान उक्त चित्रानुसार नाभि कमल, हृदय कमल और मुरा कमल पर अदारों की स्थापना करके प्रत्येक अक्षर के आधार पर क्रमशः चितन करते जाना चाहिए । उदाहरणार्य-नाभि कमल के मध्य में 'अहं' लिखा है। पहले अहे के भावार्थ पर, उसके स्वरूप पर चिंतन प्रारम्भ करना चाहिए । फिर अमा-- आदि नारों से वितन धारा को बढ़ाना चाहिए । जंग____-रिहंत ! अरिहंत प्रनुका सारून, अरिहत पद प्राप्त करने साधन । अरिहंत माद पर निदन करने के बाद सी ' र 'सार', 'अमर'