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· जैन धर्म में तप : ३ सूत्ररुचि-सूत्र से यहां अभिप्राय है-भगवद्वाणी रूप आगमअंग उपांग रूप सूत्र से है। उन्हें सुनने से धर्म में जो रुचि होती है वह सूत्ररुचि है।
४ अवगाढ़रुचि-अवगाहन का अर्थ है-गहरा उतरना। नदी, सरोवर . मादि किसी गहराई के भीतर डुबकी लगाकर नीचे उस की तह में जाना अवगाहन कहलाता है। मनुष्य शास्त्रों का अध्ययन तो करता है, लेकिन जब . . . तक उनका भाव हृदयंगम नहीं कर पाता जब तक शास्त्र का ज्ञान प्रकाश नहीं ... दे सकता । ज्ञान शब्दों का पाठ करने से नहीं, किन्तु उस के अर्थ पर चिंतनमनन करने से मिलता है। अतः यह चिंतन-मननरूप अवगाहन करने की जिस की रुचि हो, अर्थात् जो शास्त्रों के वचनों पर गहरा मनन चिंतन करने .. को उत्सुक हों, वह उत्सुकता-अवगाढ़रुचि कही जाती है। .. . ___इन चार लक्षणों से धर्मध्यानी आत्मा पहचाना जाता है। धर्म ध्यान . . को स्थिर रखने के लिये, उस चिंतन प्रवाह को अधिक स्थायी बनाने के लिये धर्म ध्यान के चार आलम्बन बताये गए हैं
१ वाचना- विचारों को पवित्र व शुद्ध बनाने वाला धार्मिक साहित्य .. स्वयं पढ़ना तथा दूसरों को पढ़ाना । __ २ पृच्छना-पढ़ते हुए यदि मन में कहीं कोई शंका होगई, कोई बात समझ में न आई तो उसे गुरुजनों से, बहुश्रुतों से विनयपूर्वक पूछकर अपने ज्ञान की गति को आगे बढ़ाना-पृच्छना है। पृच्छना-जिज्ञासा है, और जिज्ञासा ही ज्ञान की कुंजी कहलाती है।
३ परिवर्तना-जो ज्ञान सीखा हुआ है, पड़ा हुआ है उसको बार-बार रटना । मंठस्य ज्ञान को चितारना। इससे ज्ञान में स्थिरता आती है और धारणा दृढ़ बनती है।
४ धमकया-धोपदेश सुनना एवं दुमरों को धर्म का उपदेश करता। इन चारों का वर्णन स्वाध्याय प्रकरण में विस्तार के साथ किया गया है। वास्तव में ये स्वाध्याय ता में ही आते हैं, किन्तु धर्म ध्यान के आलम्बनमहामार होने से इन्हें धनमान के अन्तर्गत भी बताया गया है।