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स्वाध्याय तप
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को स्मृति में स्थिर रखने के लिए बार-बार दुहराना, पुनरावर्तन करनापरिवर्तना है।
याद करके, उसे पुनः दुहराया नहीं जाय, सीखा हुआ पाठ यदि बारवार पलटा नहीं जाय-तो धीरे-धीरे वह स्मृति से मिट जाता है, धुंधला होकर विस्मृत-सा हो जाता है। रटा हुआ ज्ञान यदि दुहराया न जाय तो भूला जाता है । एक कहावत है
पान सड़े, घोड़ा अडं विद्या वीसर जाय । तवे पर रोटी जलै कहो चला किण न्याय !
गुरु जी ! फेरया नांय ! पान को रखकर यदि पलटा नहीं जाय तो वह पड़ा-पड़ा सड़ जाता है । घोड़े को यदि घुमाया नहीं जाय तो वह खड़ा-खड़ा अड़ जाता है, विना घूमे घोड़ा अकड़ जाता है। तवे पर रोटी सेकने को डाल दी लेकिन डालकर . . फिर पलटी नहीं, तो एक तरफ पड़ी-पड़ी रोटी जल कर कोयला बन जायेगी, वैसे ही विद्या रटकर याद तो कर ली, लेकिन फिर कभी चितारा नहीं, उसको पुनरावर्तन नहीं किया तो वह भी भूली जाती है । इसलिए इन सबको 'फेरना , पड़ता है, यह फेरना ही परिवर्तना है ।
परिवर्तना से ज्ञान स्थिर होता है, सीखी हुई विद्या अधिक मजबूत होती है। ज्ञान को जितना अधिक दुहराया जायेगा वह उतना ही अधिक स्थिर होगा एवं सुतीक्ष्ण भी होगा।
जप का स्वरूप मंत्र का जप करना, पाठ करना, स्तोत्र आदि पढ़ना-यह सब भी .. . परिवर्तना स्वाध्याय के अन्तर्गत आते हैं। क्योंकि जप आदि में मंत्र-पाठ आदि का बार-बार चिन्तन करना होता है, स्मरण होता है, अतः यह भी परिवर्तना ही है।
जप के दो प्रमुख उद्देश्य होते हैं-१. मन को स्थिर करने के लिए तथा ... २. इप्ट कार्य की सिद्धि के लिए। दोनों ही लक्ष्यों के लिए जप में इप्टदेव . का स्मरण किया जाता है । उनके नामाक्षरों को विशिष्ट मंत्रों द्वारा, स्तोत्रों