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स्वाध्याय तप
४५७ है, और प्रत्येक क्षण वह अभिन्न मित्र की भांति सद्परामर्श व सद्विचार दे सकते हैं । अंग्ने जी के प्रसिद्ध विद्वान टपर की उक्ति है- बुक्स आर अवर वेस्ट फ्रेन्डस-पुस्तकें हमारे सर्वश्रेष्ठ मित्र हैं। एक विचारक ने कहा है"पुस्तकें ज्ञानियों की जीवित समाधि है । किसी पुस्तक में-ऋषभदेव, अरिष्ट नेमि एवं महावीर हैं तो किसी में राम, कृष्ण और युधिष्ठिर । किसी में वाल्मीकि, सूरदास, तुलसीदास एवं कबीर हैं तो किसी में ईसा, मूसा, और हजरत मुहम्मद ! जब पुस्तक को खोलते हैं तो वे महा पुरुष जैसे उठकर हम से बोलने लग जाते हैं और हमारा मार्गदर्शन करने लगते हैं।"
रोटी मनुष्य की सर्वप्रथम आवश्यकता है, वह जीवन देती है, किन्तु सत् शास्त्र उससे भी बड़ी आवश्यकता है । वह जीवन की कला सिखाता है। इसीलिए महात्मा तिलक ने एक वार कहा था- "मैं नरक में भी उन सत् शास्त्रों का स्वागत करूंगा, क्योंकि उनमें वह अद्भुतशक्ति है कि वे जहां भी होगे वहां अपने-आप स्वर्ग बन जायेगा।" इसलिए सत् शास्त्र का अध्ययन जीवन में अत्यन्त आवश्यक है। इसी कारण उसे शास्त्रं तृतीयं लोचनं:तीसरी आंख कही है। अपनी ही नहीं, किन्तु समस्त जगत की -सर्वस्य लोचनं शास्त्र--आंख है-- शास्त्र ! व्यावहारिक जीवन में सत्शास्त्र के अध्ययन का यह महत्त्व है । आध्यात्मिक दृष्टि से शास्त्र-स्वाध्याय का इससे भी अधिक महत्व है। भगवान महावीर ने अपने अन्तिम उपदेश में कहा है--
सज्शाएवा निउत्तण सव्वदुक्खविमोक्खणो' स्वाध्याय करते रहने से समस्त दु:खों से मुक्ति मिलती है। जन्म . जन्मान्तरों में संचित किये हुए अनेक प्रकार के कर्म स्वाध्याय करने से क्षीण हो जाते हैं
बहुभवे संचियं खलु सज्झाएण खणे खवइ'
१ नीतिवाक्यामृत ५।३५ २ उत्तराध्ययन २६।१० ३ चन्द्रप्रज्ञप्ति ६१