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________________ विनय तप दिया, किन्तु जैसे ही यह अहंकार मिटा, मन में विनता आई, विनय एवं भक्ति की भावना जगी तो बस कदम उठते ही केवलज्ञान प्राप्त होगा। इससे स्पष्ट होता है कि आत्मिक शक्तियों के विकास में विनय का जितना महत्वपूर्ण योगदान है। अहंकार को दुर्भय बट्टानों को तोड़ने का एकमात्र साधन विनय ही है । इसीलिए---माणं मध्यया जिणे---मान को मृदुता से जीतो का उपदेश दिया गया है। गांधी जी का धन है - नसता का अर्थ है अहंगाय का-आत्यंतिक क्षय । विनय से अहंकार हटता है, अहंकार हटने सेनान प्राप्त होता है। अहंकार और शान, अहंकार और बिना एक साथ नहीं रह सकते। जैन धर्म में गिनय का उपदेश आत्म-विकास के लिग, शानप्राप्ति के लिए और गुरुजनों की सेवा द्वारा मंगिरा करने के लिये ही दिगा गया है। कुछ लोग बिना को चापसी को रूप में भी प्रयोग करते है, किन्तु यह गलत है। चापलूसी दोप, मन की रपट पूर्ण किया जाना गुण है. यह मन को सरल सट ति है। नमों की प्राप्ति के लिए, एक गुनीजनों के सम्मान के रिला । अपने स . AL अपना मनीषा करने लिए बना, दूसरी मी उगने लिए मना चापलाती है। इस सहा मना है. नमननमार सत्र को बहे नमन-ममा में फार। समान जो नर्म धोतो चोर हयान । MERfor tी। मी निय के ता है और किसी का वार भी . ! रमाको मन , र म मोहिन महिने inो PAK काम दोला नि
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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