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जैन धर्म में बात थी शानी का सम्मान करने की, जानी का उत्साह बढ़ाने की ! जानी, ... विद्वान यदि समाज में आदर पायेगा तो वह अपनी बुद्धि को अधिक से अधिक समाज एवं राष्ट्र के के कल्याण में लगायेगा। तो ज्ञान बिनय का अब हमें सम्पूर्ण राष्ट्रीय जीवन के साथ देखना चाहिए कि हमारे प्रत्येक गावहार से ज्ञानी जनों का आदर व्यक्त हो। __आज शिक्षा क्षेत्र में घोर अनुशासनहीनता, उदंडता छाई हुई है। शिक्षक विद्यार्थी से डरते हैं जैसे यह तो गुरु हो और गुरु शिष्य हो। इसका कारण पया है ? यही कि छात्रों में विनर के संस्कार नहीं है ? ये जागते नहीं कि विनय किस चिड़िया का नाम है ? जबकि भारतीय नीति का भूम है कि शिक्षा के साथ विनय अत्यन्त आवश्यक है। विनय के पिना शिक्षा, विद्याभ्यास सम्पुर्ण ही नहीं हो सकता तो सफलता तो दूर की बात है। इस संदा में जैन युगों का एक प्रसंग बहुत ही मननीय है। ___ एरबार गौतम स्वामी के पास उदकपडाल पुत्र नामक एक अपना कुछ निकासा लेकर आया। यह पारवंसंतानीय श्रमण या, असायन तो उसने लिया होगा पर परिपाक नहीं हुआ था, और परिपक्क होता से, पति विनय आदि की सम्पूर्ण शिक्षा उसकी अधूरी हो रही थी। तो गौतमस्तानी से आने कुछ न किये। गौतम स्वामी ने बड़े ही नर एवं लोहार साथ उनाला इतर दिया। उत्तर पाकर उदारपेडाल पुरसलोना पर पर . गोभी बिना किसी प्रकार की शामता प्रदकिइने जगा । गीतम मामी . में देखा पर तो निरा अभिनय पूर्ण मार रहा है। जो गोदाम
हामी ने उसे मार परतों का सहा ... आयुष्मन् ! किसी के पास railer RTE भी पान सुनने को मिला ही वो उसके सा
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