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________________ ३८१ प्रति संलौनता तप ....."वे भिक्षु आरामों में, उद्यानों में, देवमन्दिरों में, सभाओं में, पानी की प्याऊ में, मुसाफिरखानों में और ऐसे ही स्त्री पशु नपुंसक रहित स्थानों में रहकर प्रासुक एपणीय पीठ, फलक, शय्या-संस्तारव आदि की याचना करके रहते ।' और भी इस प्रकार के स्थान देखिए- . .: . सुसाणे सुन्नागारे वा रक्खमूले वा एगओ। ' पइरियके परफडे वासं तत्याभिरोयए।' ___ - साधु ऐसे स्थानों में रहना पसन्द करें जो सूने हों, श्मशान में, वृक्ष के नीचे, जंगल में और बहुत एकांत में हो, तथा जो साधु के निमित्त से नहीं बनाया गया हो। .. आचारांग सूत्र में बताया गया है "भगवान महावीर कभी श्मशान में, कभी सूने घरों में, कभी वृक्ष के नीचे, कभी प्याऊ में, कभी घास के ढेर को छाया में, कभी लुहार की शाला में इस प्रकार के भयजनक, कष्टदायी और उपसर्गकारी स्थानों में रहते थे।"3 ऐसे स्थानों में रहने का स्पष्ट कारण यही है कि साधक का मन भय से मुक्त हो जाए । जो स्वयं अभय होगा, वही अभय की साधना कर सकेगा। बताया गया है- शून्य गृह आदि स्थानों में रहने से साधु को अनेक भय, उपसर्ग आदि उत्पन्न होते हैं, वहां पर वह अपनी साधना में भयभ्रान्त, चंचल एवं उद्विग्न न हो उवणीयतरस्स ताइणो भयमाणस्त विविपफमासणं । सामाइयमाह तस्त जं जो बप्पाण भए त सए । . जो विविक्त आसन आदि गो सेवना करता है, ऐसे माधु को जब शियंच, ... मनुष्य एवं देव सम्बन्धी उपसर्ग आते हैं तब वह उनमें लिपर रहे। जो अपने आपको भयभीत नहीं करता, वही सामायिक-समाधि को साधना पर मलता है। १ उबदाईम तप यांन २ राधापन ३५०६ लामासंग हार '
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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