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. प्रतिसंलीनता तप
३५७ धड़ाम से गिर पड़ा, राजकुमार के प्राण तो बच गये, लेकिन इस जंगल में वह अब अकेला बे-सहारा हो गया, वापस जाये तो कैसे ? और लंगड़े घोड़े को, सिर पर उठाकर कैसे ले जाय ? जो घोड़ा वाहन था, वह अब वाह्य बन गया, राजकुमार सिर पर हाथ धरे बैठा सोच रहा था। . दूसरे राजकुमार ने भी घोड़े को रोकने की बहुत चेष्टा थी, किन्तु जब वह कैसे भी नहीं रुका तो वह स्वयं ही घोड़े से कूद पड़ा । कूदते ही उसकी टांग टूट गई, घोड़ा भी वहां ठहर गया ।
तीसरे राजकुमार ने भी घोड़े को रोकने की चेष्टा की, ज्यों-ज्यों रोकने की चेष्टा की, घोड़ा तेज से तेज दौड़ता गया । आखिर उसने घोड़े की रास(लगाम) ढीली छोड़ दी, जैसे ही लगाम ढीली छोड़ी, घोड़ा वहीं रुक गया, राजकुमार नीचे उतर कर छाया में विश्राम करने लगा। कुछ देर बाद उसने अपने भाइयों की खोज की, तो एक भाई अपनी टांग तोड़े बैठा मिला तो दूसरा घोड़े की टांग तोड़कर बैठा मिला। ___ जो साधक इन्द्रिय एवं मन को वश में करने के लिए उन्हें नष्ट करने, बेहोश करने तथा नशे-पते के द्वारा मूर्छा देने की बात करते हैं वे घोड़े की टांग तोड़ते हैं। यदि घोड़े को अपंग कर दिया तो फिर वह घोड़ा आपको कहीं भी नहीं ले जा सकेगा, जहां भयंकर जंगल में ले जाकर डाल दिया बस वहीं पड़े रहोगे। दूसरे सवार की भांति कुछ साधक मन व इन्द्रियों को विल्कुल खुला छोड़ देने की बात कहते हैं। उन्हें यह घोड़ा कहां लेजाकर पटकेगा और कितना नुक्सान करेगा कुछ पता नहीं ? उन्हें जीवन यात्रा के सर्वथा-अयोग्य ही बना देगा ! इसलिए तीसरे घुड़सवार की भांति मन को ढीला छोड़कर उसे दौड़ने से रोकना चाहिए। मन को वहां पर रोकना, कसना और कहां पर ढीला छोड़ना-जो साधक इस कला में निपुण होगा वही मन को प्रशान्त बनाकर समाधिस्थ कर सकता है ।
__ मन को कैसे मोड़े ? __मन फे दुस्साहसिक उत्पथगामी पोहे को सुपच पर लाने के लिए गया फरना चाहिए? यह प्रश्न साधक जीवन के लिए यहत ही महत्व पूर्ण है।