________________
३४०
जैन धर्म में तप
मदस्यान वैसे तो कोई भी वस्तु अभिमान का कारण बन सकती है, तुच्छ से तुच्छ. मनुष्य के पास भी ऐसे कारण हो सकते हैं जिन पर वह अभिमान करें, नकद . . जायें । विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ने लिखा है---"धूआं आसमान से और राख पृथ्वी से शेखी वधारते हैं कि हम भी अग्निवंश के हैं ।" यदि अभिमान का और कुछ कारण न मिले तो व्यक्ति यही सोचकर अभिमान करने लगता है कि यह संसार तो मेरे ही आधार पर चलता है, मैं न होता तो दुनियां टिका ही नहीं सकती । गुजराती कहावत है--"टोंटोड़ी पग ऊंचा करने सुवै, ते आम धारे के आकाश मारा पग पर ज अद्धर रहलु छ" तो इस तरह कोई भी कारण, निमित्त, हेतु ऐसा मिल सकता है जिस पर अहंकारी व्यक्ति फूल उठे । गिन्तु मुख्यतः आठ कारण ऐसे बताये गये हैं जिनमें प्रायः सभी अहंकार के कारण खोजे जा सकते हैं। वे ये हैं
अट्ठमपटाणे पणते तंजहाजातिमए फुतमए अलमए स्वमए
तवमए मुपमए लाभमए इस्सरियमए ।' मद के आठ स्थान बताये गये हैं । स्थान का अर्थ-निमित है ! अथवा भाश्रय भी कह सकते हैं। आचार्य नरदेन ने स्थान माम मागही किया है, अर्थात् ये माठ बातें मनुष्य के अहंकार का मात्रय-आधार हो सकती हैं। ये आठ मदस्थान ये है-.
जाति मदनी और श्रेष्ठ जाति (मानवंश) का अभिमान । फुल मद मुल (शिवयंश) का अभिमान । बस मदतना अभिमान। रप मद-प-सौन्दर्य का अभिमान । तर मद-उसस्वी होने का अभिमान ।