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________________ ३३० जैन धर्म में ता मादि कारण होते हैं । सांप सिंह आदि कभी-कभी भय व वहम - कि यह मुझे । मारेगा । इसी कारण क्रुद्ध होकर मनुष्य पर झपटते हैं। मेतायं मुनि पर सुनार ने वहम कर लिया कि मेरे स्वर्ण यव इसी ने चुराये हैं जबकि उन्हें तो कोई मुर्गी जो समझकर खा गई थी। इसी वहम के कारण वह मुनि पर क्रुद्ध हो उठा और उनकी मृत्यु का कारण बना। पुरुपसिंह नाम के राजा के मन में मंत्री पालक ने यह वहम पैदा कर दिया था कि यह राजकुमार राज्य हड़पने के लिए आया है । इसी वहम ने राजा को कि कर्तव्य-विमूढ बना दिया, क्रोध में आकर उसने मुनियों को पापी मानक के हाथ सौंप दिगाइन्हें जैसी राजा देना चाहो दो । यह चौथा कारण है। ५ विचार भेद के कारण प्रत्येक मनुष्य के विचार गुछ न कुछ भिन्न होते हैं । जब एक दूसरे पर अपने विचार थोपने का प्रयत्न होता है तो संघर्ष खड़ा होता है, संघर्ष द्वन्द्व का रूप धारण कर लेता है, विचार भेद के कारण क्रुद्ध होकर आपस में हाथा पाई मारते हैं, मारपीट और हत्या तक कर डालते हैं । ग्यत मांति का मूल कारण भी विचार भेद ही है । नपसलबाद का तांडव, जगणित निरपराधों के सून से जिसका इतिहास लिखा गया है मूलत: विचार भेदजन्य संघर्ष ही है। इन कारणों के अलावा अन्य भी अनेक कारण हो सकते हैं जिनके कारण मनुष्य का खून गर्म हो उठता है, बुद्धि में असंतुलन आ जाता है, कर्तव्य-अकर्तव्य का विवेक भूल जाता है और यह बड़े-बड़े अनर्थ कर डालता है। जिन कारणों से शोध का उदय होता हो, उन कारणों को बनना चाहिए, उन कारणों का निवारण करते रहना चाहिए, और काके मूल में रही हुई भूल को पकड़ना चाहिए । इसी क्रोध का उदय काम होता है, शोध पतला पड़ जाता है। यदि श्रोध आ भी गया तो उसे विफल गारने में गहायता मिलती है। शास्त्र में कहा है-मनुष्य को अपनी प्रतिभा को, संकल्प को सदा यात्म करना चाहिए बोर कौय को व अहंकार पो असता ! फोहं असतं फुयिजा धारेजा पियमप्पियं-- । उनमायमन ।।१४
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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