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[ २८ ] पं० श्री मोहनलाल जी गोटेचा, साहित्याचार्य
एम ए एच-पी. ए , स्वर्णपदक प्राप्त
___ वरिष्ठ अनुसघान अधिकारी क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थान, (आयुर्वेद)
जयपुर (राजस्थान)
प्रस्तुत ग्रंथ एक उत्कृष्ट एव परम उपादेय रचना है। इससे मानव को सही मार्गदर्शन प्राप्त हो सकेगा। जीवन को किस प्रकार सयम तप की साधना मे सलग्न किया जाय - इसका अनुभूतिपूर्ण मार्ग-अववोध-प्रस्तुत ग्रन्थ रत्न से प्राप्त किया जा सकता है।
श्रद्धास्पद श्री मरुधर केसरी मिश्रीमल जी महाराज एक त्यागी, तपस्वी, विद्वान एव प्रखर प्रवक्ता योगी हैं, साधक हैं। उनका जीवन सचमुच मे पारस है, जो इमका स्पर्श करता है, वह स्वर्णत्व को अवश्य प्राप्त होगा।
समस्त ग्रन्थ का अनुशीलन करने के बाद यह धारणा पुष्ट होती है, कि प्रस्तुत अन्य जैन धर्म मे तप . स्वरूप और विश्लेषण' वास्तव मे ही तप का सर्वाङ्गीण स्वरूप व्यक्त करने में सक्षम है। इसके अध्ययन अनुशीलन से पाठको को असण्ड-आत्ममानन्द को प्राप्ति होगी।