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कायक्लेश तप
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ठाणाइए, उक्कुडुयासणिए, पडिमठाइ, वीरासहिए
णेसणिज्जे, दंडाइए लगंडसाई।' कायक्लेश सात प्रकार का बताया है.-कायोत्सर्ग करना, उत्कटुक आसन से ध्यान करना, प्रतिमा धारण करना, वीरासन करना, निषद्यास्वाध्याय आदि के लिए पालथी मार कर बैठना, दंडायत-होकर खड़े रहना लगड-लकड़ी की भांति खड़े रहकर ध्यान करना ।
उववाई सूत्र में इन्हीं भेदों को विस्तार के साथ बताकर चौदह भेद कर दिये गये हैं जो इस प्रकार है
१ ठाणठ्ठिइए- कायोत्सर्ग करे । २ ठाणाइए-एक स्थान पर स्थित रहे । ३ उक्कुडु आतणिए-उत्कुटुक आसन से रहे । ४ पडिमट्ठाई-प्रतिमा धारण करें। ५ वीरासहिए--वीरासन करें। ६ नेसिज्जे-पालथी लगाकर स्थिर बैठे। ७ दंडायए-दंडे की भांति सीधा सोया या बैठा रहे। ८ लगंडसाई-(लगण्डशायी) लक्कड (वक्रकाष्ठ) की तरह सोता रहे । ६ आयावए-आतापना लेवे १० अवाउडए-वस्त्र आदि का त्याग करे । ११ अफंडुयाए-शरीर पर खुजली न करे । १२ अणिठ्ठहए-थूक भी नहीं थूके १३ सव्वगायपरिफम्मे--सर्व शरीर की देखभाल (परिकम) से
रहित रहे, १४ विभूसाविप्पमुपके-विभूपा से रहित रहे ।
कायक्लेश तप में सर्वप्रथम कायोत्सर्ग की साधना पर बल दिया है इसे व्युत्सर्ग (बारहवें तप) में भी गिना गया है,वहां शरीर,कपाय आदि के व्युत्सर्ग
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१ स्थानांग ७। सूत्र ५५४ २ उवयाई समवसरण अधिकार तप वर्णन