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जैन धर्म में सप का निदान किया--"अधिक आम खाने से ही आपको रोग हुआ है। जब तक आम खाना बन्द नहीं करेंगे कोई भी दवा नहीं लगेगी।"
राजा ने बहुत दीनता से कहा-'वैद्यराज ! आप दया देकर गुशे टोप कर दीजिए ! मैं आपको मुंह मांगा इनाम दूंगा। किन्तु में आम ताना नहीं छोड़ सकता।"
वैद्यराज ने कहा-... "यदि आम खाना नहीं छोड़ोगें तो मैं श्या, धन्यतार भी ठीक नहीं कर सकता, फिर तो वैद्यराज नहीं, किन्तु यमराज ही ठीक कर सकता है।"
परिवार जनों ने और मंभि आदि ने बहुत समझाया तब कहीं जाकर राजा ने आम छोड़ना स्वीकार किया। वैद्यराज ने दवा दी. राजा भीध्र हो ... स्वस्थ हो गया। कुछ दिन बाद फिर आम साना शुरु कर दिया। पुनः बोमानी खड़ी हो गई । राजा ने फिर से वैध राज को बुलाया । बधाम में कहा----"नाजन् ! यदि जीवन चाहते हो तो सदा-सदा के लिए बाम को छोड़ दो ! आम खाना गया, आम को लाया में भी मत बैटो। तब तो तुम पूर्ण आयुष्य तक जी रायते हो और स्वस्थ भी हो सकते हो, अन्यथा तुम्हारे संग की कोई औषधि नहीं है।"
मरता गया नहीं करता - राजा ने हमेशा के लिए आम म गाने भी प्रतिमा पर ली। यही नहीं, किन्तु राज्य में समस्त आमों के प्रभारी पदा दिगे । आमों की बड़ी-बड़ी अगराईगांसाफ मारवादी । गग्य की सीमा रही एक भी शाम का पेड़ नहीं रहने दिया । मोना-जयनगंगा योग मौन बजेनी गांगुरी ! नाज्य में आम का पेड़ ही न रहा जो भाग भाग .
ने ? बैंच ने बोधि दी, नाना फिर स्वार हो गया। ____ या मोरम में राजा सपने मंत्री माय गम-सिर पर Semi-RRIER पानी की मामा कर. मग ।
पिन , सीमा पर मारे ग free