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परित्याग तप
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भी दया
-रे सूर्य ! पराया अन्न खाने को मिला है तो साले ! शरीर परकरा करकरीत फिर-फिर के मिल जाता है, किन्तु पराया धन वारवार नहीं मिलता ।" यह नहीं सोच पाता किन्न तो पराया है, किन्तु पेट तो नहीं है ? तो किस पेट को दस-दस का नेता है और फिर रोगी होता है कष्ट पाता है, अनेक प्रकार की बीमारियों में पिर जाता है और अन्त में हाय नाय करता हुआ मरता है ।
ने एक हजार वर्ष तक संयम पाता, किन्तु सिर में ग
भोजन
लोलुपता के कारण संगम से हुआ और
करके मोह महारोगों में नाकात ही मदनरक में गए।
उत्तराध्ययन सूप (७) में बताया है कि मनुष्य
अपने जीवन से भी विसरता है ।
यह सपने मन को वन में नहीं
फिर रोग हो जाते है और आदिर में रोग मृत्यु के बाद कहा गया है
देता है। एक प्राचीन
और में भी
उपत
भरता है, जाकर उन
अपत्यं संवर्ग भोच्चा राया र तुहाए।
एया है - किसी नगर
ने स्व के कारण
अपथ्य आम साकर एनेपस (जीवन यामा) कार दिया।
आग के दिनाक्षम
मानेका हुन ।
गाना भी नही होने
के पहेन्यसे कमी नगर में
ऐसी
की। अमिषा में आने से से, हिन्दु रोग
माना
नहीं भारत की एक नाम नही पहचान
में
पैदा ही न
हमें एक सू
दिय
करी
किती शुरू यहत के fee को उसने भा