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भिक्षावरी तप
आज धन्य भाग्य है ! आज का दिन धन है जो ऐसे अमल मेरे घर पर मिक्षा के लिए प्रधान रहे हैं। फिर वह जहां बैठा हो उत आसन से उठकर उत्तरासंग करे, मुंह पर वस्न नगापार मुनि को वंदना करे, नात-आठ मदम भर्थात् गुन्छ दुर ता मुनि को लेने पे लिए सामने जाये, उन्हें वंदना पार प्रसता व्यक्त गरे कि है भगवन् ! आज आपका आगमन सा हो गया मचमुच मेरे घर में कल्पवृक्ष आ गया है ? मुझे इतनी प्रसन्नता हुई है रित कोई अमृत पान कर लिया हो।" इस प्रकार, प्रसामना करके मुनि नतो भारनी भोजन माला कम लाये, अपने हाथ में भुन निर्योग आरोमिक्षा देये, भिक्षा दे समय भी प्राप्त रहे, देने के पनात भी मन में प्रमाला अनुभव करें। भोर मुनि को पाने बाहर तर घोड़कर भागे।"
भागों में गानों पर निक्षा दान की गा विधि बनाई गई है। प्रारक गा कर दिया. इस प्रकार में नि । गानही शिमुनि भिक्षा में लिए आगे, गरम लापरवाही से मंकाको गाई भिकारी जागा हो, मिले तो जान मिले तोपानी लौट आप गंधा पूर्वर मारलाही में शानदेवा , आमदनी भी मिलता और माया नमः पर भी मिलता। जग पन भी मिला जब मो में, प्रेमशः दान दिया जाम भान गादि में पारा निधिको
देगी माना जाय, बागा आगन धी को म यो नेह, आदर सम्मा । सोनमा गांद बोले गुग मीठी वाणी ,
मदुम या यान भोजन ने पानी ।