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भिक्षाची तप
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उसमें द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव सम्बन्धी अभिग्रह, एपणा सम्बन्धी विधि और गति सम्बन्धी वेद भी सम्मिलित कर लिये गये हैं ।
तीस प्रकार के अभिग्रह
(१) य्य अभिग्रह ( चारफ) - द्रव्य वस्तु सम्बन्धी वभिग्रह करना । जैसे-उग्रव के बाकले, भुने चने आदि अमुक द्रव्य मिलेगा तो ग्रहण करूंगा, अन्यथा उपवास करूंगा। इसमें वस्तु की संख्या का भी संकल्प किया जा सकता है-जैसे दो लड्डू मिलेंगे, एक रोटी मिलेगी तो मूंगा, इससे कम या नधिक मिलेंगे तो नहीं दूंगा | यह अभिग्रह है। जैसे भगवान महावीर उदके वाले लेने का अभिग्रह किया था।
(२) क्षेत्र बनिग्रह (धारक) --अमुक क्षेत्र में आहार मिलेगा तो लुगाजैसे-यात न घर के अन्दर बैठा होन घर के बाहर | देहली में पैर कर बैठा हो । जैसेवाला के सम्बन्ध में भगवान महावीर का अभिग्रह फला-यह हनी के बीच में बैठी हुई मिली। इसमें अनेक प्रकार के विकल्प किये जा सकते है, के बाहर भिक्षा मिले, भीतर भिक्षा मिले, जमुक में भिक्षा मिले तो इस प्रकार के सभी अभिय क्षेत्र अभि में भ (३) बाल अभिग्रह (धारक) - दिन में समय दिन के अमुक प्रहर में, अमुक घंटा में गोरी जैसे भगवान महावीर मे तीसरे पहर का (४) भाप अभियमुक नाति, के साथ जमून ग्रह किया था
आसूसी
में
अभि करना ।
नहीं।
तो
दिया था ।
मुनि,
भाव
जैसे भगवान महावीर मे अभि
पढ़ने में ffm
भिक्षा देगा तो गा कोकणा से रि हो, ही भाषा में
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तो सुगः ।
भाप में है।
चः
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१ कप भोजन के पाfrom m
भोजन पाए जाने