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जैन धर्म में तप नाजा ने कहा 'आप लोगों के उत्तर से मैं कुछ समझ नहीं पाया। अतः स्पष्टीकरण करके समझाइए।"
पहले भिक्षु ने कहा- "मैं कथावाचक है, लोगों को कथा सुनाकर अपना निर्वाह करता हूं। दूसरे ने स्पष्टीकरण किया मैं संदेश वाहक है। यात्रा करता रहता है और लोगों के संदेश इधर से उधर पहुंचाकर अपना निहि. करता हूँ।"तीसरे ने बताया- "मैं लेखक (लिपिक) हूं । अतः हाथ से अपना निर्वाह करता है। चौथे भिक्ष ने कहा- "मैं लोगों को प्रसन्न करने उनका अनुग्रह प्राप्त करता हूँ उसी से मेरा निर्वाह हो जाता है।"
सबसे आखिर में मुधाजीवी भिक्षु बोला -- ' मैं संसार से वियत निग्नंन्य भिक्षु हूँ। मुझे जीवन निर्वाह की या चिन्ता ? निस्वार्थ बुद्धि से लोगों को उपदेश सुनाता है और संयम-निर्वाह के लिए अल्प भोजन विशुद्ध रीति से लेता है। मैं भोजन के लिए किसी की स्तुति प्रशंसा नहीं करता, किगो के सामने दौलता नहीं दिखाता और न किसी को सत्य उपदेश देने हिनगि नाता है। अतः मैं मुधाजीबी भिक्षु हूँ।". ___मुधाजीवी भिक्षु का भयन सुनकर राजा बहुत प्रभावित हुआ। उसने सिर झुकाकर नगशार किया और बोला-'वास्तव में गच्चे गुरु आप ही है, मुझे धर्म का ज्ञान दीजिये ।"
मुनि ने राजा को धर्म उपदेश दिया। राजा प्रतिबुद्ध होकर उनका निप्य बन गया।
मुधाजीवी अर्थात् निस्वार्थ भाव से लोगों का कल्याण कर लिया प्राप्त करने वाला निक्षु वास्तव में ही आदर्श होता है और वही ना . निक्षा का अधिपाती हैं। पेने भिा बट्टा ही दुनम हो । बागम में
बुल्लहानो मुहादायी मुधात्रीयो यि दुल्लहा । गुहादायी मुबानीयो योयि गच्छति गुग्गई।"