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कनोदरीतम
एकदम ही उन पर नकाटियों का अम्बार लगा दिया तो वह चुश जाती है-- यही स्थिति जठराग्नि की है। पोरे पोरे, थोडायोड़ा साने से भनि तेज रहती है और एका नाम ही भूल ने अधिका लिया तो बस अनि हो जाती है, अग्नि मंद हो गई तो बस फिर पाचन गिया बिगड़ जाती है, बात काम करना बन्द कर देता है, साये हुए का नहीं बनता, रस नहीं बनता, शरीर दुर्बल और क्षीण होने लग जाता है।
इसलिए कहा गया है कि गाने में सबसे पहली मर्यादा तो यही कि साना मा माओ जिसे अकराग्नि मंद पर जाग, गाना-विजा गि जाय ।
प्रत्तीस कपल-प्रमाण गो गाय ही भोजन गी छ न त मर्यादा समय भी निगा किया गया । माया के सम्बन्ध में दिनार मानते हुए जेन ना में गहा गया
साधारण स्वरण मनुष्य का भोजन बीम का मानना है । मान के दो अर्थ किये
गोर्गी अंडे के बराबर बर मा सागर गायन यालाता । भानारों ने मचान का अभियाना अना भोजन म भाग फर नेने पावतीमा भाग ना है नदि एक मनुसना भोजन भार टीकाको मोटो गाशा भाग एक मगर ना कोटि में
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