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कोदरी तप
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करता है,
अनुपयुक्त आहार शरीर के बल, वीर्य, बीन आदि को आवश्यकता के अनुसार प्रकृति के अनुकूल किया हुआ आहार शरीर में
बल, आरोग्य की वृद्धि करता है ।
धानायें उगायाति ने सबको इनमें है
कालं क्षेत्रमा स्याम्यं य-गुद सायं स्वयम् । ज्ञात्वा योऽभ्यव्हार्य मुद्रको कि भवजस्तस्य । जो कान, क्षेत्र, मात्रा, हित, पदार्थ की गुस्तायता--( भारीपन ) तथा अपनी पाचन शक्ति का विचार कर भोजन करता है, कसे दवा की कभी जरूरत नहीं पह कभी मना नहीं होना । इसलिए आवश्यक है कि ने पहने आहार की गाथा का मान मा किया जाये |
हो सकता है -पस्थ और पाप के है क्या वाके
निगम वो अपया मर्यादा ही पति की
बाहार की मात्रा में जिन प्रकार समय
कति है। उनमें बहता है
दीनी नहीं
बामी १० रोटी साल भी नहीं होता और गाव पाते है गामा पहलवान मानामि २५ फू
केही मानिये कि बीमा नहीं को जी
में पैसा कोई सामान्य विम
है,
श्रायाम, पापा
और
पानी पर डर मानी ने जो जाम भी एक Anamnest राजस्थानी प्राण उनका गाना ग्या गाने के बाद की बारदाने गा चाय को नहीं निभा
पा
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