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अनशन तप
पानशनात् परं ।
faar विनिवर्तन्ते निराहारस्य
आहार का त्याग करने से मन के विषय विषय-निवृत्ति होने से मन में पवित्रता आती है, है, इस प्रकार नीरोग मनुष्य प्रसन्न रहेगा -- इससे अतः उपवास करने से शरीर दुर्बल नहीं, किन्तु स्वस्थ और तेजस्वी बनता है। मनोबल बढ़ता है, मानसिक शक्तियां शुद्ध होकर केन्द्रित हो जाती हैं जिससे तपस्वी बड़े-बड़े कष्टों को भी चुटकियों में उड़ा देता है ।
तपस्या के इन्हीं लाभ रूप परिणामों को देकर एक ऋषि ने मुक्त कंठ से कहा है-
जैन सूत्रों में तप के भगवान महावीर मे न की प्राप्ति होती है?
देहिनः । "
विकार दूर हो जाते हैं ।
शरीर भी रोगमुक्त रहता ओज तेज प्रगट होगा । अधिक नीरोग, सवल,
परं तपस्तव दुर्घम् तद् दुरापम्
-और कोई तप नहीं है । साधारण मनुष्य के लिए यह तप बड़ा ही दूध सहन करना और बहुत करना कठिन है कठिनतम है । यह तो एक प्रकार की अग्नि का रूप है जा है। जो इसमें कूद पड़ेगा उसके समस्त मत दूर हो जायेंगे। यह निरार उठेगा, चमक उठेगा और जो करता सोगा यह अपने अशुद्ध रूप में ही पड़ा रहूँगा ।
लाभ के विषय में पूछा गया है। पर गौतम करते हैं--आने से
नाम होता है ?
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चारमा कोसे
उत्तर में कहा गया है--बहार का स्वा
वर्षात्
का नोट रहता है, और
एवं प्रायों का मोह छूट जाता है।
र १०१२
परी
कारी एवं के
१ भगवद गीता २१५६
२
३ २०३४