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स्थिति में भी साधक जीवदया के लिए अहित की रक्षा के लिए आहार का परित्याग कर दे ।
नशन तप
(५) तप के लिए जब साधक तप आदि करना चाहे तो उसके लिए भी आहार त्यागना होता है ।
(६) शरीर त्याग के लिए-- जब देने कि शरीर बल, वीर्य, ओज आदि से हीन हो गया है, चलने फिरने में ग्लानि होने लगी है, तब शरीर को छोड़ने के लिए उपवास वेला आदि तप तथा नंलेखना प्रारम्भ कर देनी
चाहिए ।
--जव श्रमण यह देखे कि अब यह गलने नाचारांग में बताया है में समर्थ हो रहा है, तब धीरे-धीरे उसे आहार का लाग करते जाना चाहिए ।
उपवास के लाभ
आहार त्याग के जो छः कारण बताये हैं- प्रकारान्तर से मे हो कारण अनशन के हो जाते है । अर्थात् बाहार त्याग में जो उद्देश्य कहता है वही उद्देश्य अनशन का है। प्रारम्भ में हमने वहीं बताया है-का अर्थ है आहार ! और अनशन का अर्थ है-निराहार ! अर्थात् आहार त्याग, उपवास आदि ।
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तप का उद्देश्य क्या है यह तो प्रथम में ही बहुत विस्तार के माम बता दिया गया है। वात्मशुद्धिकर्मवोधन यही प्रमुख है। यहाँ विषय में नयक्ति को लापता नहीं है अतः के विषय में ही विस्तार के नही है। अन को सभी वर्षों में स्थान मिला है,
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१ समता का गेमे दे। निनामिरातु न इसरी
तप आचरण में अन्य वर्षों से अधिक पर विजय करनी होती है और
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भूरा से व अन्याय करतो जीना और मापसे
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“आवास का