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जैन धर्म में तपः ।
आमने आप भाप में प
रामचने लगे।
। एक पौराणिक कथा है कि रामचन्द्र जी वनवास से लौटकर जब अंपोध्या . प्रवेश कर रहे थे तो अयोध्या के नागरिक उनके स्वागत में बहुत दूर तक .. मने आये । नागरिकों का अभिवादन लेते हुए रामचन्द्र जी ने सर्व प्रथम उनसे पूछा-आप के घरों में अन्न कुशल क्षेम है ? ....
स्वागत के अवसर पर रामचन्द्रजी का यह प्रश्न लोगों को बड़ा अजीयोगरीव लगा, कुछ लोग मन ही मन हंसने लगे। उन्होंने सोचा-"वनवास में राम को जरूर भूख सताती रही है, इसलिए सबसे पहले अन्न को याद बायी है ।" वे बोले-'हां, महाराज ! अन्न की क्या फिकर है ? सय
बस पहले
?
कुशल है ?"
ताद लिया, पर जा भोज के लिए यहा रहे। लोगों का आ रही थी 1 हो
दिनमा उनके साल
ही
में ।
! फिर हम आप रामचन्द्र जी
सेवकों को संकेत :
___लोगों का छुप-छुपकर हँसना और व्यंग्यपूर्वक बोलना रामचन्द्र जी । ताद लिया, पर उस समय वे कुछ नहीं बोले । स्वागत समारोह के बाद ए दिन नागरिकों को भोज के लिए बुलाया गया । नागरिक आये । काफी देर तक राम उनके साथ गपशप करते रहे । लोगों को भूख सताने लग गई। इधर उधर देखा, पर कहीं अन्न की वास भी नहीं आ रही थी । आसिर भूस से परेशान होकर नागरिकों ने कहा-महाराज ! पहले भोजन हो जाय ! फिर हम आपके साथ विचार चर्चा करेंगे।
पूर्व योजनानुसार रामचन्द्र जी ने सेवकों को संकेत किया-सोने के पालों में हीरे-मोती-मानिक भरे हुए माये ! सब नागरिकों के सामने जवाहरात के पाल रख दिये गये। लोग दिग्मूढ़ से देख रहे थे-कुछ समक्ष नहीं पाये कि रघुपति राम उनके साथ आज क्या मजाक कर रहे हैं ?
राम बोले-श्रीमानो ! अब भोजन प्रारम्न कीजिये ?"..."अब तो मजाक की हद हो गई ! पेट में चूहे दंट पैन रहे हैं, और सामने होरे पाने में पात . परोसे जा रहे है ? लोग बोले-"महाराज ! बाप जैसे नीतिश आज हम लोगों से साय या मजाक कर रहे हैं ?
राम ने कहा-"नहीं! फोई मजाक नहीं !" "तो हम क्या मागे ? अन तो है ही नहीं !"
"अन्न का क्या करना है ? राम ने कहा ।" जन्म का दाना तो मामूली पोज है, कहीं भी मिल जाता है ! आप लोग होरे जवाहरात मीजियेन?
हरात के बाल नामानिक भरे हुए