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जैन धर्म में तप
. तपस्विनी धमनियों जैन परम्परा में सिर्फ श्रमण ही नहीं, किन्तु श्रमणियां भी तपःसाधना .. मेंप्रतिस्पर्धा के साथ आगे बढ़ती रही हैं । काली, महाकाली,रामकृष्णा आदि महाराज श्रेणिय को दस रानियों की तपस्याओं का वर्णन अंतगड़ सूत्र में आता है, जिसे पढ़ते-पढ़ते रोमांच होने लगता है-कि एक सुकुमाल नारी जो किसी प्रतापी सम्राट की महिषी रही होगी, फूलों की शय्या में सोती रही .... होगी, मन चाहे मधुर मिष्ठानों से जिसकी मनुहारे होती होंगी वह नारी जब साध्वी जीवन में आती है तो इतना उग्र तप करना शुरु कर देती है कि जिसे सुन कर बड़े-बड़े योद्धाओं के दिल कांपने लग जाते हैं। चंदना, मृगावती आदि साध्वियों के तपोमय जीवन की घटनाएं तो अभी ढाई हजार वर्ष पुरानी भी नहीं हुई हैं।
- और इस मध्यकाल में भी कितने महान श्रमण तपस्वी हुए हैं क्या उनका अमर इतिहास इन कागजों पर कभी उतरा है ? शायद बहुत कम ! सौ में एकाधा ही, सैकड़ों-हजारो तपस्वियों ने अपनी तपःअग्नि की आहुतियां देकर जैन धर्म के तेज को, गौरव को सदा दोप्त किया है, करते रहे हैं ।
अर्वाचीन युग में : मध्यकाल में भी अनेक महान तपस्वी, योगी हुए हैं जिनके उग्र तप की भारत के सुदूर प्रांतों तक में बहुत चर्चा थी । दुईलिका पुप्य मित्र, पादलिप्त सूरि तथा अन्य अनेक तपः साधकों के नाम लिये जा सकते हैं। ___ अभी दो सौ-तीन सौ पूर्व भी हमारे समक्ष ऐसे महान तपस्वी आए हैंआवायं भूधरदास जी, आचार्य रघुनाथ जी, पूज्य जयमल्ल जी, तपती . . भोपत जी, तपस्वी श्री येणीदास जी म. नादि । उनके तपोमय जीवन की . घटनाएं भी बड़ी प्रेरक रही हैं।
स्थानकवासी परम्परा के पूर्व पुरुप आचार्य भूधरदास जो म० सायं एफ ... महान तपस्वी थे। तपस्या के विविध अंगों को उन्होंने कठोर आराधना की थी।
महान तपोधन आचार्य श्री रपताप जी हमारे प्रात:स्मरणीय आचार्य श्री रघुनाल जी महाराज का अमर नाम