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में चिंतन किया है, धारणाए स्थिर की है, मर्यादाएं बनाद है, माधना पा मार्ग निश्नित किया है।
जैन आगमों में, टीका, भाप्य आदि ग्रपी में, सतों के प्रवचन आदि साहित्य में तप के सम्बन्ध मे हजारो विचार विगरे पड़े हैं। इस विषय की सामग्री इतनी विशाल है कि यदि सपूर्ण रूप से सकलित करने का निश्चय किया जाय तो मिर्फ सकलन में ही कई वर्ष लग सकते हैं, और मापद फई हजार पृष्ठो में गी यह पूरी नहीं हो पायेगी।
प्रस्तुत पुस्तक में मैंने उम सामग्री को मार एक मक्षिप्त स्परेगा की तरह प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। इसी प्रेग्पा जगी थ य श्री मरपर फेगरोगी म० मे माहित्य का सपादन-प्रमाणन करते समय । उनके प्रयननों में तप के सम्बन्ध में कई महत्वपूर्ण प्रवचन थे, जिन्हें देखकर मेरे मन में गललगा जगी, "तप सम्बन्धी प्रचननो गागा बस मालनही कर लिया जाय तो सामग्री मापी उपयोगी व सकलन शो हरिट से पुछ नवीनता लिए होगी।" वा, उगी भावना ने इस ओर उन्मुग किया । उन प्रागन माहिती टटोना, बलग-अलग गयो में बाटा, और ग वन के मूल उगम स्थलो गा अनुमधान किया-~ग प्रसार या पुस्तक "नयम में नप म्याप और विसंतप" अपने रप में मल्ट हो गई। मनपायन नगभग एवमें पुछ अधिक ही समय नगा । ग वीर में प्रदे मागेगी गमा में बनेपा पार मार्गदर्शन भी जामा । साप ही बसम्म नाला गरगि जी, एक गिलास पर श्री
सिमा मार्ग न भी मिला । बनेग प्राली, हिसाना मायान से समयमम पर नो मध्य भी देना । गोरेला में ROAT
नं ६ को गोरे | RE गर ना THोर मेर माग मिमता को जापान में प्रार PRITI में पाया ।
सरकार से firriti irani 5 Farmer , P-METER