________________
१००
जैन धर्म में तप है; किन्तु वही प्रतिसेवना, जब अपवाद काल में परिस्थिति आ जाती है, तब , रागद्वेप की भावना से अलिप्त रहता हुआ साधक यदि उसका आचरण । करता है तो वह निपिद्ध आचरण भी कल्पिका है, उसकी प्रतिसेवना में भी संयम की आराधना है। व्यवहारभाष्य में तो यहां तक कह दिया है कि सालंबसेवी समुवेइ मोक्खं .--साधक यदि किसी विशिष्ट उद्देश्य से निपिद्ध .... का आचरण भी करता है तब भी वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है। ___ भावना और परिस्थिति की इसी भूमिका पर जैन धर्म का आचार महल खड़ा है । लब्धि-प्रयोग में भी हमें इसी दृष्टि से सोचना होगा कि सामान्यतः लब्धि फोड़ना निषेध है, लब्धि फोड़ने वाले को प्रायश्चित्त भी बताया है, किन्तु यदि कोई महत्वपूर्ण प्रसंग आ पड़ता है तो उस समय में साधक पीछे भी नहीं देखता, किन्तु अपने तपोबल से, संघ की, धर्म की, एवं . किसी प्राणी की रक्षा के लिए लब्धि का प्रयोग भी कर लेता है । भगवान . . ' महावीर स्वयं जब साधना काल में थे तब गौशालक की प्राणरक्षा के लिए द्रवित होकर उसे वैश्यायन तापस की तेजोलेश्या से जलते हुए को बचाया और .. शीतल लेश्या का प्रयोग किया। यह महान करूणा का प्रसंग था, एक जीव की रक्षा का प्रसंग था और महान दयालु प्रभु महावीर ऐसे अवसर पर मौन. ... कैसे रह सकते थे ? शक्ति होते हुए भी यदि किसी की रक्षा न की जाय, .. किसी का उपकार न किया जाय तो क्या यह साधु धर्म है ? ..
रक्षा बन्धन पर्व की कथा सुनने वाले जानते हैं कि जब नमुचि प्रधान को दुष्टता के कारण धर्मशासन पर संकट आ गया था, जैन धर्म पर विपत्ति की काली घटाएं मंडराने लगी थी तव आचार्य ने लब्धिधारी मुनि विष्णु कुमार को याद किया। शिष्य को मेरु पर्वत पर भेजकर उन्हें आने का आग्रह किया। मुनि विष्णु कुमार ने उस परिस्थिति में अपना ध्यान बन्द करके संघ की रक्षा का बीड़ा उठाया, और नमुचि से सिर्फ तीन पांव रखने
१ व्यवहार भाप्य पीठिका १८४ २ भगवती सूत्र १५॥