________________
दर्ह
तप और लब्धियां
वैक्रियलव्धि के प्रभाव से ही वह दिखा पाता था ।
भोजन करा
रहता है । वस,
(२७) अक्षीणमहानस लब्धि - इस लब्धि के प्रभाव से तपस्वी भिक्षा में लाये हुये थोड़े से आहार से लाखों व्यक्तियों को भरपेट सकता है । फिर भी उस भिक्षा पात्र का अन्न अखूट बना शर्त यही है कि जब तक लब्धिधारी स्वयं भोजन न करे अखूट रहता है, जब लब्धिधारी स्वयं उसमें से एक ग्रास भी खा लेता है तो फिर वह अन्न समाप्त हो जाता है ।
तब तक ही वह
वल्पसूत्र में गौतम स्वामी की क्षीणमहानसलब्धि के चमत्कार को एक घटना बताई गई है जिसे देखकर पन्द्रह सौ तापस उनके शिष्य हो गये । घटना इस प्रकार है
कोडिन्न, दिन्न और सेवाल नाम के तीन तापस गुरु थे । प्रत्येक के पांचपांच सौ तापसों का शिष्य परिवार था, यों पन्द्रह सौ तीन तापस अष्टापद पर्वत पर आरोहण कर रहे थे । सभी तपस्या से बड़े दुवले हो रहे थे । कोडिन्न तापस पांचसौ शिष्यों के साथ पहली मेखला तक चढ़ा था, दिन का परिवार दूसरी मेखला तक और सेवाल का परिवार तीसरी मेखला तक आरोहण कर गया था । अष्टापद पर्वत पर एक-एक योजन की कुल आठ मेखलाए थीं । ऊपर चढ़ने में तापस खिन्न हो गये थे और हताश से बैठे थे । तभी गौतम स्वामी उधर से आये और देखते-देखते ही लब्धिवल से अष्टापद पर्वत के शिखर पर चढ़ गये । गौतम के इस तपोवल से सभी तापस बड़े प्रभावित हुये, उन्हें आश्चर्य भी हुआ कि 'हम तो एक-एक मेखला पार करने में ही थक कर चूर हो जाते हैं और यह तपस्वी एकदम ही शिखर तक जा पहुँचा | जरूर यह महान लब्धिधारी और तपोवली है। जब यह तपस्वी अष्टापद से उतर कर आयेंगे तो हम भी उनके शिष्य बन जायेंगे ।"
I
इन्द्रभूति शिखर से वापस नीचे आये । तापसों ने विनयपूर्वक कहा - 'आप हमारे गुरु हैं और हम आपके शिष्य !' तापसों के आग्रह पर इन्द्रभूति ने उन्हें दीक्षा दी । अपने अक्षीण महानस लब्धिवल से खीर के एक ही भरे हु