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जैन धर्म में तप
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(१६) चक्रवर्ती लब्धि-छह खण्ड के स्वामी को चक्रवर्ती कहा जाता है । चक्रवर्ती एक पराक्रमी राजा होता है, जव चक्रवर्ती लब्धि के प्रभाव से उसे चौदह रत्न प्राप्त होते है तो वह छह खण्ड पर विजय करता है और फिर चक्रवर्ती सम्राट का पद प्राप्त करता है।
(१७) बलदेव लधि
(१८) वासुदेव लब्धि-वासुदेव तीन खंड के स्वामी होते हैं। युद्ध कौसल एवं राजनीति में वासुदेव चक्रवर्ती से भी बढ़-चढ़कर होता है । चक्रवर्ती स्वयं युद्ध कम करते हैं उनका सेनापति रत्न ही अधिकतर युद्ध करता है, किंतु वासुदेव स्वयं युद्ध करते हैं इसीलिए-जुद्धे सूरा वासुदेवा' युद्ध में वासुदेव शूर होते हैं-कहा गया है । ये सात रत्नों के स्वामी होते हैं। बलदेव वासुदेव के बड़े भाई होते हैं। बलदेव प्रायः सात्विक व धार्मिक प्रकृति के होते हैं, किंतु वासुदेव राजसी और तामसी प्रकृति के तथा भोगप्रिय एवं राज्य सत्ता के आकांक्षी होते हैं। जिस लब्धि के प्रभाव से बलदेव पदवी प्राप्ति हो वह वलदेवलब्धि तथा वासुदेवपदवी प्राप्ति हो वह वासुदेव लब्धि कहलाती है। बलदेव पदवी बड़ी भाग्यशाली है, इस पद में उसकी कभी मृत्यु नहीं होती, किन्तु पद को छोड़कर मुनि बनता है, और कर्म क्षय कर मुक्ति प्राप्त करता है ।
वासुदेव में वीस लाख अप्टापद का वल होता है । उसके वल का अनुमान करने के लिये आचार्यों ने एक उदाहरण दिया है-एक वासुदेव कुएं के तट पर बैठा हो, उसे जंजीरों से बांधकर उसकी समस्त सेना के हाथी, घोड़े, रथ और पदाति (पैदल)-यों चतुरंगिणी सेना के साथ सोलह हजार राजा उस जंजीर को दम लगाकर खींचते रहे, पसीना-पसीना हो जाये फिर भी वे वासुदेव को खींच नहीं सकते। किन्तु वासुदेव उस जंजीर को बाएं हाथ से पकड़ कर बड़ी आसानी के साथ उसे अपनी ओर
१ स्थानांग४. .