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निर्ऋति, और अपूर्व विज्ञान है और न उसमें निरर्थक रीतियोंका ही निरूपण है और न मयोत्पादक पूजा आदिसे ही पूर्ण है । जैनधर्म में अंधश्रद्धाका भी अभाव है। वह अपने अनुयावियोंको प्रत्येक तत्वको न्यायपूर्ण परीक्षाकी कसौटी पर कसकर और उनके यथार्थ भावको समझ कर ही श्रद्धान करने की अनुमति देता है। प्रारम्भ में जैनधर्म में सर्व-प्राणी- समुदाय तृषित सुखके यथार्थ रूपका निरूपण है । यद्यपि कुछ कालके लिए विषय सुख इन्द्रियोंको सातासी पहुचा देते हैं परंतु यह तो प्रत्यक्ष ही है कि इन्द्रियजनित विषय सुखोंसे जीवोंकी तृषा नहीं बुझती । इन्द्रियजनित सुख पूर्णतया क्षणभंगुर है, अन्य वस्तुओं और देहधारियोंक मेल पर निर्भर है। इनकी प्राप्ति दुःख पूर्ण है और अंत
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