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(२४) उसको . इस अपूर्णताका अभाव हो जायगा जिसकी कपासे आधुनिक सभ्य समाज आत्माको कोई वस्तु नहीं समझती और मनमाने. पापाचरण कर इस भव और दूसरे भवों में दुःख उठाती है।
अन्तमें प्रिय पाठक ! आपसे जैनधर्मको वैज्ञानिक ढंगसे अध्ययन करनेका ही निवेदन है और यदि आप आत्माके वास्तविक उद्देश्यको ध्यानमें रक्खे रहोगे तो जैनधर्म ही उस उद्देश्यकी पूर्ति हेतु परमोत्कृष्ट मार्ग प्रदर्शित होगा । एवम् भवतु । * .
ॐ शांति ! शांति !